आज नवंबर की 21 तारीख है और मौसम में जैसे बहार आ गयी है।
हवा चल रही है, धूप भी निकली हुई है। हवा में ठंड के आने का एक एहसास छुपा हुआ है।
पास ही की झाडिय़ां में छोटी छोटी चिड़ियाएं, अपने पंख साफ कर रही हैं, एक भंवरा खिली धूप में, फूलों पर मँडरा रहा है।
पास ही में खेलते कुछ बच्चों का शोर सुनाई पड़ रहा है। आस-पास के लोग अपनी-अपनी छतों पर धूप का आनंद ले रहे है।
रह-रह कर चलती सूखी हवा से, पेड़ों के पत्ते आवाज़ करते हैं, फिर कभी सब कुछ एकदम शांत हो जाता है।
सुनहरी धूप में सब कुछ कितना सुंदर प्रतीत हो रहा है।
मुझे अपने पुराने दिन याद आ रहे है। प्रकृति का ये रंग जैसे मेरी यादों में घुल रहा है
और मुझे ले जा रहा है अपनी पुरानी यादों के अथाह समुंदर में।
कॉलेज के दिन, दोस्तों के साथ ऐसे ही मौसम में पुलिया पर बैठे रहना, क्रिकेट खेलना और ना जाने क्या-क्या।
जैसे ये मौसम बहुत सालों के बाद हुआ है। दिल में एक खुशी सी लग रही है।
मैं जैसे यहाँ भी हूं और अपने पुराने दिनों में भी।
मौसम की ये छटा जाने कितनी पुरानी यादों को ताज़ा करे दे रही है।
कभी-कभी तो इतना शांत हो जाता है की आप घड़ी की टिक-टिक भी सुन सकते हो।
खिड़की का परदा भी हवा के झोंके से रह रहकर हिल रहा है।
कमरे में खिड़की से छनकर आती धूप एक अलग ही एहसास दे रही है।
कभी तो हवा का ऐसा झोंका आता है की दरवाज़ा पूरा हिल जाता है, मानो किसी ने दरवाज़े पर दस्तक दी हो।
समय मानो पंख लगा कर उड़ रहा है। ढ़लती शाम जैसे अब जाने की इजाज़त ले रही है।
वातावरण में धीरे-धीरे ठंड बढ़ रही है। सड़क पर अब चहल-पहल भी कम होने लगी है।
ये ठंड के आगमन की तैयारी है। बेहद खूब-सूरत।
मौसम जैसे मुझे अपने समय में पीछे ले गया हो। मन में तो जैसे यादों की बाढ़ सी आई हुई है।
ये प्रकृति के बदलते स्वरूप कैसे हमारी यादों से जुड़ जाते हैं... ?
अत्यंत विस्मयकारी है ये एहसास।
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