मम्मी रसोई में खाना बना रही थी। इतने में नीचे से किसी ने आवाज़ लगाई।
मनु...., मुझे कुछ लगा की शायद कोई अवाज दे रहा है। फिर मुझे लगा मेरा वहम है।
लेकिन इस बार मैंने ठीक से सुना। ये तो मेरे मित्र रोहित की अवाज थी, जो मेरे घर के नीचे बाइक पर खड़ा चिल्ला रहा था।
मैं बालकनी में आया और रोहित ने मुझे नीचे आने का इशारा किया। मैंने अपने घर पे कहा की अभी आता हूँ।
इतने में मम्मी ने कहा, "अभी कहीं नही जाना है, खाना तैयार हो गया है और फिर तू ना जाने कितनी देर में वापस आएगा।"
मैंने मुंह बनाते हुए कहा, "बस अभी आ जाऊंगा ना, दोस्त नीचे खड़ा इंतजार कर रहा है।"
इतना कहते हुए मैं सीधा तीसरी मंजिल से नीचे की ओर भागा। आते ही मैंने अपने दोस्त से हाथ मिलाया,
और सीधा उसकी मोटर-बाइक पर बैठ गया। मैंने कहा, "भाई जल्दी ही आना होगा वापस क्योंकि खाने का समय हो गया है।"
रोहित ने कहा, " हां हां यार, बस 10 मिनट। रोहिणी जाकर वापस आना है। "
मैंने कहा "भाई कम से कम 1 घंटा लग जायेगा।" मैंने मन में सोचा, आज तो घर में बहुत डांट पड़ने वाली है बेटा।
फिर सोचा देखा जाएगा। रोहित बोला, चिंता मत कर, बस आधा घंटा लगेगा ज़्यादा से ज़्यादा। और उसने बाइक तेजी से दौड़ा दी।
शायद ये समय ही ऐसा था, जो घर में कम और बाहर ज़्यादा समय व्यतीत होता था।
मुझे अब यकीन हो गया था की हम जल्दी से वापस आ जायेंगे, क्यूंकि बाइक 80-90 की स्पीड पर थी और हम हल्ला मचाते हुए जा रहे थे।
रोहित ने अपना काम समय से पूरा किया और हम 25 मिनट में वापस भी आ गये।
मैं लगभग चलती बाइक से उतरा और चिल्लाते हुए बोला, "कल मिलते हैं भाई", कहते हुए अपने घर की सीढियाँ,
एक बार में 2 या 3 लांघते हुए जल्दी से दरवाजे तक पहुंचा और घंटी बजाई। मन में डर लग रहा था की कहीं डांट ना पड़े।
लेकिन मैं समय से घर वापस आ गया था। फिर हम सब एक साथ बैठकर खाना खाने लगे, इतने में मुझे नीचे से आवाज़ आयी, मनु....। अब की बार मम्मी ने डांटते हुए कहा, "पहले खाना खाओ अपना।" लेकिन मैंने सुना नहीं और सीधा बालकनी में आ गया ।
नीचे मेरा दोस्त मोहित था, वो बोला "नीचे आ एक मिनट कुछ काम है।" मैंने कहा, "अभी खाना खाकर आता हूँ। "
वो बोला "ठीक है।" मैं जल्दी से वापस खाना खाने बैठ गया। जल्दी में जैसे भूख ही मर गई थी।
मैंने खाना खाया और सीधा नीचे चल दिया और बोला अभी आता हूँ। मेरा दोस्त नीचे इंतजार कर रहा था,
आते ही मैंने कहा, "माफ करना यार!! इंतज़ार करा तुमने।" वो बोला कोई बात नही। फिर हम पैदल ही चल दिए।
मैंने कहा "क्या काम था?" वो बोला "एक दोस्त के घर चलना है, बस उस से कुछ नोट्स लेने थे।"
थोड़ी ही देर में मैं वापस आया और सोने की तैयारी करने लगा। अगला दिन रविवार था, और सुबह-सुबह लगभग 6 बजे ही नीचे से आवाज़ आई।
मनु..... मैं उठ चुका था पहले ही, तो सीधा बालकनी से झांककर देखा तो नीचे 5-6 दोस्त क्रिकेट खेलने की तैयारी कर रहे थे।
मैंने बस मुंह धोया और सीधा मैदान में पहुंच गया। एक घंटे बाद घर से आवाज़ आई।
मनु...... मैं समझ गया की ये नाश्ते का बुलावा है।
मैंने वही से हाथ हिलाकर कहा, आता हूँ। जब हमारी टीम की बल्लेबाजी की आयी तो मैंने कहा, "मैं अभी आता हू "
और भागते हुए घर आया, जल्दी से नाश्ता किया और वापस अपनी टीम के पास आ गया। तब तक मेरी बारी भी आ ही गई थी।
दोपहर तक हमने खूब खेला और मैं वापस आकर नहाया, दोपहर का खाना खाया और फिर से नीचे चल दिया।
वहां कुछ और दोस्त मिल गए। हम सब एक पुलिया पर बैठ गए जो की कॉलोनी के अंदर आने के रास्ते पर बनी थी।
वहां थोडा हंसी मजाक किया और फिर घर वापस चल दिए। घर आकर थोड़ा समय घर वालों से बातें करीं।
तभी नीचे से एक दोस्त की आवाज़ आ गयी। ये सोनू था।
वो मोटर-बाइक लिये खड़ा मस्कुरा रहा था।
मैंने घर पे कहा, "अभी आता हूं"... बस, फिर वही व्यस्त जीवन शूरू......
ये समय का वो टुकड़ा जो कभी वापस नहीं आ सकता !!

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