Hindi Kahani - डरावनी रात का सफर !!
वीकेंड आ गया था। मैं इस बार पुरा वीकेंड घर बैठ कर नही बिताने वाला था।
दोस्तों से बात की। सभी इस सप्ताह व्यस्त थे। मैंने अकेले ही कुछ प्लान करने की ठानी।
नज़दीक के ही सिनेमा हॉल में एक इंग्लिश हॉरर फिल्म लगी थी। सोचा वो ही देखी जाए।
फिर सोचा, भूत की फिल्म, वो भी अकले। चलो जो होगा देखा जायेगा।
आजकल तो मैं जिम भी जा रहा था और हनुमान चालिसा मुझे ज़ुबानी याद थी।
बस यही सोच कर फिल्म की टिकट बुक कराई। किसमत देखो, रात के शो का टिकट मिली मुझे।
फिल्म हाउसफुल जा रही थी। अब मैं घर से निकला और बाहर ही डिनर किया।
फिर सीधा सिनेमा हॉल पहुँच गया। ये सर्दियों की एक ठंड और धुंध वाली रात थी।
हल्का कोहरा होना शुरू भी हो गया था। एक बार तो मन में आया,
वापस घर ही चल देता हूं, फिर सोचा, इतनी महंगी टिकट भी खरीद ली है।
चलते ही है, जो होगा देखा जायेगा। रात के शो में ज्यादा लोग नही आये थे।
सर्दियों में सब टाइम से घर जाना पसंद करते हैं। अब फिल्म शूरू हुई।
सिनेमा हॉल का साउंड इफेक्ट, डर को और बढ़ा रहा था।
Hindi Kahani - डरावनी रात का सफर !!
कई बार तो मैं, मारे डर के, लगभग चीख़ ही पड़ा था।
वो तो मेरे आस पास की सीटें खाली थी। नहीं तो सब हंस पड़ते।
फिल्म खत्म हुई। जो थोड़े बहुत लोग, रात का शो देखने आये थे,
वो अब धीरे-धीरे अपने-अपने घर चल दिये और पूरा परिसर कुछ ही देर में खाली हो गया।
मैं भी पार्किंग में पहुंचा और कार शुरू कर के अपने घर चल दीया।
ठंड के मारे कंप-कंपी छूट रही थी, या फिर शायद डर के मारे।
धुंध बहुत ज्यादा हो गयी थी। कुछ भी साफ साफ नजर नही आ रहा था।
तभी सामने एक आदमी की अकृति उभरी। उसने टोपी पहनी हुई थी और एक ओवर कोट भी था।
वो मुझे रुकने का इशारा कर रहा था। जाने क्यों अनायास ही मेरे पैर ब्रेक पर दबते चले गए।
वो आदमी मेरे पास आया और कहा, "क्या आप मुझे आगे तक लिफ्ट दे देंगे ?"
मैं उसका चेहरा साफ़-साफ़ नहीं देख पाया।
धुंध बहुत थी और सड़क के इस भाग में, लाइट्स भी काम नही कर रही थी।
Hindi Kahani - डरावनी रात का सफर !!
मैंने जाने क्यों हाँ कह दिया। और वो आदमी झट से कार के अंदर आ गया।
मैंने कार आगे बढ़ा दी और पुछा, "आप को कहाँ छोड़ दूँ ?"
मेरा ध्यान सड़क की तरफ ही था। अचानक वो अंजान शख़्स ज़ोर से हंसा
और बोला, "जहां आप को जाना है, मुझे भी वहीं जाना है। "
अब मैं सच में डर गया था। मेरी हिम्मत ही नही हुई की उसका चेहरा देखूँ।
लेकिन ये आवाज़ मुझे जानी पहचानी लगी। मुझे अब अपनी मम्मी की
वो बात याद आ गई, "किसी अंजान को बिना सोचे-समझे लिफ्ट मत देना बेटा"।
मारे डर के मैं हनुमान चालिसा भी भुल गया था। मेरे 14 इंच के डोले मानो 4 इंच के रह गए थे।
सारी तकात खत्म हो गई थी उस आवाज़ को सुनकर। कार की स्पीड अब 80- 100 के बीच झूल रही थी।
उस अंजान शक्स ने आगे क्या कहा, मैं सुन ना पाया।
30 मिनट का रास्ता मैंने 12 मिनट में तय कर लिया था। मेरा घर अब आने ही वाला था,
तभी उस शख़्स ने मुझे हिलाते हुए कहा, "बस मनु जी, और
आगे क्या अपने घर ले के जाना है मुझे, बस यहीं गाड़ी रोक दो "।
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इतना कह कर वो उतर गया। ये तो पास वाला कब्रिस्तान था। और वो मेरा नाम कैसे जानता था,
उसे ये कैसे पता की मेरा घर नज़दीक ही है। ये सब सोचते हुए मैं आगे बढ़ चला।
मुझे ऐसा लगा वो मुझसे और बात करना चाहता था शायद। मैंने शीशे में से देखा,
कहीं वो मेरी गाड़ी का पीछा तो नहीं कर रहा।
मगर वो अपनी जगह ही खड़ा था और मुझे बाय-बाय का इशारा कर रहा था।
धुंध में उसकी आकृति धुंधली होती चली गई और मैं भी अपने घर आ पहुंचा था।
इतनी ठंड में भी मुझे पसीना छूट रहा था। मैं सीधा अपने कमरे में गया और कपड़े बदलकर सो गया।
बहुत मुश्किल से नींद आयी थी। अगले दिन सुबह घर की घंटी से मेरी नींद टूटी।
कौन आया होगा इतनी सुबह ? दरवाजा खोला तो सामने मेरा मित्र
मुकेश खड़ा था। वो अलग ही अंदाज़ में हंस रहा था। मैंने उसे घर के अंदर आने को कहा।
कुछ देर वो मुझे घूरता रहा और फिर बोला , "रात को ज़्यादा ही पी ली थी क्या मनु जी ?"
मैंने तपाक से कहा, "क्या बोलते हो भाई, हम कहां इस चककर में पड़ते है "।
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फिर मुकेश बोला, "रात को इतने घबराये हुए क्यूँ लग रहे थे ?"
मैंने सोचा इसे कैसे पता चला रात वाला किस्सा। मैंने कहा "क्या बोल रहे हो यार"।
मुकेश ने कहा, "अरे भाई जब मैंने तुमसे लिफ्ट ली थी तब तुम बहुत जल्दी में थे
और थोड़े घबराये हुए लग रहे थे, सब ठीक है ना ?"
मैंने चौंक कर कहा, "वो तुम थे यार "। वो बोला, "तो क्या तुम पहचान ही नहीं पाए ?"
अब मैंने ऐसा दिखाया जैसे कुछ हुआ ही ना हो।
बहुत मुश्किल से मैंने अपनी प्रतिक्रिया को छिपाया और कहा, "हां भाई हां,
हमे पता था, बस थोड़ा जल्दी में थे तो ज़्यादा तुमसे बात नही कर पाए।
मन ही मन मैं खूब हंसा। फिर हम दोनों ने साथ में चाय पी और अब मन भी हल्का हो गया था।
मैंने सोचा, ये सारा कसूर उस डरावनी फिल्म का और माहौल का था।
नहीं तो हम तो शेरों के शेर हैं.. क्यों.....
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