एक सहकारी विभाग मे, मेरी नई नई नियुक्ती हुई थी। मैं अत्यंत प्रसन्न था।
मैंने कार्यालय जाना शुरू किया और फिर एक नियम बनता चला गया।
उस दिन भी मैं रोज़ की तरह कार्यालय गया।
पता चला कि हमारे कार्यालय की चौथी मंजिल पर आग लगी थी रात को।
अब सब ठीक था, आग पर रात को ही काबू पा लिया गया था।
परंतु जलने की महक अब भी वातावरण में मौजूद थी।
अधिक नुकसान नही हुआ था, बस उस कमरे में रखा लकड़ी का समान और एक टाइप-राइटर जल गया था।
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सभी ने अपना कार्य सामान्य रूप से संपन्न किया।
दफ़्तर से निकलते समय, मुझे बड़े बाबू ने बुलाया और कहा, तुम अब रात में कार्यालय आना
अगले कुछ दिन तक, क्यूंकि चौथी मंजिल पर कुछ ज़रूरी दस्तावेज़ है, जो कि तुम्हारी देख-रेख में रहेगा,
जब तक कि उस कमरे का ताला ठीक नही हो जाता, और तुम्हारे साथ चौकीदार तो रहेगा ही।
मैंने भी हाँ कर दी। अब मैं रात को दफ़्तर आया और सामान्य रूप से अपना कार्य करने लगा।
रात को करीब 1 या 1.30 बजे होंगे, मुझे ठीक से याद नही।
अचानक ऐसी अवाज आने लगी, मानो कोई टाइप-राइटर पर कुछ टाइप कर रहा हो।
मुझे आश्चर्य हुआ, इतनी रात को कौन कार्यालय आया होगा।
मैंने अपने कमरे से बाहर आकर देखा, वहां कोई ना था। चौकीदार भी नीचे गेट पर था।
अब मैंने पाया, की ये आवाज़ चौथी मंज़िल के उसी कमरे से आ रही थी, जो की जल गया था।
उत्सुकतावश मैं बहुत तेज़ी से सीढियाँ चढ़ने लगा और सीधा चौथी मंजिल पर जाकर रुका।
अब मैंने देखा, की टाइपिंग की आवाज़ आनी बंद हो गई थी। मुझे लगा की मेरा वहम है शायद।
मैं वापस नीचे उतरने लगा। जैसे ही मैं एक मंज़िल नीचे उतरा, वो आवाज़ फिर से आनी शुरू हो गई।
अब पक्का था, कि ये आवाज़ उसी कमरे से आ रही थी।
मैं दोबारा वहॉं गया और जैसे ही कमरे के सामने पहुंचा, वो आवाज़ बंद हो गई।
अब मैंने उस रूम की लाइट जला कर अंदर झांका, सब कुछ जैसे का तैसा था।
जला हुआ टाइप-राइटर भी वहीं पड़ा था। लेकिन वहां कोई और ना था।
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टाइप-राइटर |
मन में आशंका हुई की जला हुआ टाइप-राइटर कैसे अपने आप आवाज़ कर सकता है।
मैंने दरवाज़ा बंद किया और फिर से नीचे आने लगा।
अब फिर से वही टाइप-राइटर की अवाज आनी शुरू हो गई थी।
एक अंजाने डर से मेरा सामना हुआ तब। मैं बेहद तेज़ी के साथ सीढ़ियां उतरता चला गया
और सीधा अपने पहले मंजिल स्थिथ कमरे में आकर रुका।
मैं पसीने से नहा गया था, जैसे-तैसे मैंने अपना कार्य पूरा किया और सुबह घर आया।
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अगले कुछ दिन ऐसा ही चला। वो आवाज़ रोज़ एक ही समय पर आनी शुरू होती
और फिर सुबह के आस-पास बंद हो जाती।
बाद में उस कमरे का सामान कहीं और भेज दिया गया और कमरे को ठीक-ठाक कर दिया गया।
मुझे भी सुबह आने को कह दिया गया था पहले की तरह। मैंने ऐसा कुछ फ़िर कभी नहीं सुना।
सब सामान्य हो चुका था। जाने ऐसा क्या हुआ होगा वहां,
इस बात का जवाब, किसी को आज तक नही मिला।
ये एक ऐसी घटना है, जिसपर विश्वास नहीं होता, परंतु ये पूर्णतः सत्य है।
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