रविवार की छुट्टी आने वाली थी, मैं कुछ पूरा दिन आराम से सोकर गुजराना चाहता था और बस हाथ में टीवी का रिमोट लिये पकवान खाने का विचार कर रहा था। तभी घर की लैंडलाइन की घंटी बजी। मैंने फोन उठाया, दुसरी तरफ से जीजाजी की मधुर आवाज़ सुनाई दी, "और भाई मनु जी, क्या चल रहा है", मैंने कहा की सब ठीक है, ना जाने मेरे मन में एक अशंका उत्पन्न हुई, की इनकी आवाज़ में इतना जोश क्यों है आज, लगभग तुरंत ही अशंका का समाधान हो गया, जीजाजी ने कहा कि कल रविवार को हम सब वहाँ आ रहे है , कुछ अच्छा सा कार्यक्रम बना लो पूरे दिन के लिये ।
मैं मानो सुन्न पड़ गया था, गई मेरी पुरी योजना आराम से सोने की। मैंने हंस कर पुछा, "कौन कौन आ रहा है आप के साथ", पता चला की बुआ जीऔर फूफा जी भी साथ आ रहे है । मैंने हस्ते हुए कहा, "आ जाइये, सब साथ में मजे करेंगे।" सब में मुझे एक बात और अच्छी लगी की साथ में मेरी 6 साल की भांजी भी आ रही थी । वो बहुत ही प्यारी लडकी है । अब रविवार का इंतज़ार होने लगा। कल क्या क्या किया जाय, ये सोचते सोचते ही कब आँख लग गई, पता ही नहीं चला। अगले दिन सुबह करीब 10 बजे, सब मेरे घर आ गए । मानो तुफान मचा हो। जीजाजी ने आते ही कहा, "भाई क्या बनाया है मेरे लिये, ये घास-फूस तो मैं खाता नही "?
ये कहते हुए उनका 8 इंच मोटा पेट 2 इंच और आगे बढ़ गया। मैंने कहा की आज हम पुरा दिन बाहर ही बिताने वाले हैं, तो वहीँ कुछ खा लेंगे और मैंने सबके लिये एक नई फिल्म की ऑनलाइन टिकट भी बुक कारा ली थीं । सब खुशी से उछल पडे। हम सब 9 लोग थे। एक कार और एक ऑटो में सब पूरे आ गए। कार्यक्रम 12 बजे का था, तो सब जल्दी जल्दी करने लगे। रास्ते में मैंने सबके लिये बर्गर लिये और खाते-खाते सब सिनेमा हॉल पहुंच गए। वहाँ पहुँचते ही मेरी भांजी जोर से बोली "मामा जी हमें देर हो गई है, चल-चित्र आगे निकल जायेगा"।
हम जल्दी करते हुए सिनेमा हॉल के अहाते में पहुंचे , तभी एक बार फ़िर मेरी भांजी ने कहा "हमें देर हो गई है जल्दी करो "। अबकी बार किसी नी भी मेरी ना सूनी और तपाक से हॉल के मेन प्रवेश द्वार की तारफ भागे। लेकिन वहा अंदर को सब अँधेरा ही अँधेरा था और फिल्म शुरू भी हो चुकी थी।
दरवाज़े पर खडे कर्मचारी को अपना फोन दिखाते हुए मैंने अपनी सीटों की जगह पूछी, और फ़िर हम सब बताई हुई दिशा की तरफ चल दिए । सबसे आगे जीजाजी, उन्होंने जल्दी-जल्दी में जैसे ही अपनी सीट की तरफ़ कदम बढ़ाये तो वो पहली सीट पे बैठे व्यक्ति के ऊपर लगभग गिर गए और जैस ही गिरे तो उनका मोटा पेट थोडा दब गया और एक छोटी सी पूं जैसी आवाज़ हुई। मानो किसी ने वहां आसु गैस का गोला छोड दिया हो, एक पल को तो मुझे चक्कर ही आ गए । जाने निचे दबे आदमी का क्या हुआ होगा ? मैंने उस व्यक्ति को देखा जिसपर वो गिरे थे, वो तो मानो सुन्न ही पड़ गया था, आँखें बड़ी हो गई थीं मानो किसी ने बेहोशी की दवा सुंघा दी हो । जीजाजी लगभग तुरंत ही उठ गये और ऐसा दिखाने लगे लगे कि जैसे कुछ हुआ ही ना हो और अपनी सीट की तरफ बढ चले ।
फिर उसके बाद बुआ जी ने अंदर अपनी सीट की तरफ आने की कोशिश की । और वो भी उस पहली सीट पर बैठे व्यक्ति के पैर पर चढ़ गई और एक ढप्प की आवाज़ के साथ उस पर गिर गई। इस बार जैसे वो बेहोशी से जगा हो। और एक दबी हुई सी चीख उसके गले से निकली । बुआ जी का वजन क़रीब-क़रीब 100 किलो तो होगा ही। बुआ जी, क्षमा मांगते उठी और आगे बढ़ चली। अब की बार शुरू के 3 लोग उठ कर बाहर ही आ गये और कहा, " पहले आप अंदर चले जाएँ फ़िर हम बैठ जायेंगे "। इस तरह हमने अँधेरे में अपनी अपनी सीट ढूंढी और आख़िरकार फिल्म का मजा लेने लगे । सबने हल्ला मचाते हुए पुरी फिल्म देखी और पॉपकॉर्न भी खाये।
बाद में हम जब सिनेमा हॉल से निकले तो हमने वहीं बाहर एक रेस्तरां में खाना खाया और लगभग शांति के साथ वापास घर लौट आये। शाम होते-होते सबने विदा ली और तब कहीं जाकर मुझे थोडा आराम करने का मौका मिला । लेकिन मजा बहुत आया... 😅😅😅
तो दोस्तों कैसी लगी आपको ये कहानी, ऐसी ही और कहानियों के लिए आते रहिये इस ब्लॉग पर, मिलते हैं अगली कहानी के साथ तब तक नमस्ते !!
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